How will climate change affect India in 2030:- कल्पना करें कि 2030 में भारत में गर्मी इतनी तेज हो कि बाहर निकलना मुश्किल हो जाए। मानसून कभी शहरों को डुबो दे, तो कभी खेतों को सूखा छोड़ दे। ये कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन (climate change) की वजह से भारत का भविष्य हो सकता है। 1.4 अरब लोगों, तेजी से बढ़ते शहरों और खेती पर निर्भर अर्थव्यवस्था के साथ, भारत इस बदलाव का बड़ा शिकार हो सकता है। लेकिन इसका आम भारतीय की जिंदगी, नौकरी और खाने पर क्या असर होगा? आइए, आसान और रोचक भाषा में समझते हैं कि 2030 तक global warming भारत को कैसे प्रभावित करेगा।
भारत जलवायु परिवर्तन के प्रति इतना संवेदनशील क्यों है?
भारत का भूगोल इसे climate change के लिए बेहद कमजोर बनाता है। उत्तर में हिमालय की ऊंची चोटियां और दक्षिण में 7,500 किलोमीटर की तटीय रेखा भारत को कई खतरों से जोड़ती है। बढ़ता तापमान, अनियमित बारिश, पिघलते Himalayan glaciers, और तेज तूफान (climate disasters) खेती, शहरों और लोगों की जिंदगी को खतरे में डाल रहे हैं। विश्व बैंक के अनुसार, भारत की 80% से ज्यादा आबादी उन इलाकों में रहती है,

जहां जलवायु से जुड़ी आपदाओं का खतरा है। 2030 तक तापमान में 0.5 से 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो सकती है। यह छोटा-सा बदलाव खेती, पानी की उपलब्धता और लोगों के स्वास्थ्य पर गहरा असर डालेगा। Global warming का असर भारत में पहले से ही दिख रहा है, और आने वाले सालों में यह और गंभीर होगा।
अत्यधिक गर्मी स्वास्थ्य और कामकाज पर बढ़ता खतरा
2030 तक भारत में heatwaves की तीव्रता और संख्या बहुत बढ़ जाएगी। दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में गर्मी के दिन दोगुने हो सकते हैं। गर्मी और नमी का मिश्रण इतना खतरनाक होगा कि बाहर काम करना लगभग असंभव हो जाएगा। 2015 में भारत में एक गर्मी की लहर ने 3,500 से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी, और वैज्ञानिकों का कहना है कि climate change ऐसी घटनाओं को और आम कर देगा। गर्मी से health risks जैसे हीटस्ट्रोक, दिल की बीमारियां और सांस की तकलीफ बढ़ेगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि 2030 तक दुनिया में हर साल 2.5 लाख लोग जलवायु से जुड़ी बीमारियों से मर सकते हैं, जिसमें भारत का हिस्सा बड़ा होगा। बाहर काम करने वाले लोग, जैसे मजदूर और किसान, सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।

एक अध्ययन के मुताबिक, भारत 2030 तक 34 लाख नौकरियों के बराबर काम के घंटे खो सकता है, क्योंकि गर्मी में बाहर काम करना मुश्किल होगा। 2022 में उत्तर भारत में गर्मी ने गेहूं की फसल को 20% तक नुकसान पहुंचाया, जिससे किसानों को बड़ा घाटा हुआ और खाने की कीमतें बढ़ीं। डॉ. रॉक्सी मैथ्यू कोल, एक जलवायु वैज्ञानिक, कहते हैं कि शहरों में कंक्रीट गर्मी को और बढ़ाता है, इसलिए हमें हरे-भरे पार्क, छायादार सड़कें और ठंडक देने वाली इमारतों की जरूरत है ताकि urban planning के जरिए इस खतरे को कम किया जाए।
अनियमित मानसून बाढ़ और सूखे की दोहरी मार
भारत का मानसून अब पहले जैसा नहीं रहा। 2030 तक बारिश कम दिन होगी, लेकिन जब होगी, तो बहुत तेज होगी। इससे कुछ जगहों पर बाढ़ आएगी, तो कुछ जगहों पर सूखा पड़ेगा। तेज बारिश की घटनाएं 40% तक बढ़ सकती हैं, जो climate disasters का रूप ले सकती हैं। केरल (2018) और उत्तराखंड (2013) की बाढ़ इसका उदाहरण है, जिन्होंने करोड़ों का नुकसान किया। भारत के कई शहर और गांव इस खतरे की चपेट में होंगे। दूसरी ओर, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य सूखे का सामना करेंगे, क्योंकि कम बारिश से खेतों को पर्याप्त पानी नहीं मिलेगा।

असम में बाढ़ हर साल किसानों को तबाह करती है, और उनके पास बचने के लिए ज्यादा संसाधन नहीं हैं। Monsoons की अनिश्चितता भारत की खेती को बर्बाद कर सकती है। आईपीसीसी (जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल) का कहना है कि हमें पानी बचाने और बाढ़ रोकने के तरीके ढूंढने होंगे, जैसे बेहतर जल प्रबंधन और बाढ़ चेतावनी सिस्टम।
कृषि और खाद्य सुरक्षा बढ़ता संकट और भूख का खतरा
भारत में आधे से ज्यादा लोग खेती पर निर्भर हैं, जो जलवायु परिवर्तन के प्रति बहुत संवेदनशील है। 2030 तक agriculture पर गर्मी, सूखा और बाढ़ का बुरा असर पड़ेगा। फसलों का उत्पादन 15% तक कम हो सकता है। गन्ना, चावल और गेहूं की पैदावार घटेगी। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में गन्ने की फसल 25% तक कम हो सकती है। इससे food security खतरे में पड़ेगी, और खाने की कमी से 20% ज्यादा लोग भूखे रह सकते हैं। खाने की कीमतें भी बढ़ेंगी, जिससे गरीब परिवारों पर और बोझ पड़ेगा। आंध्र प्रदेश के किसప
System: किसान सूखे की वजह से हर साल 20% तक कमाई खो रहे हैं। 2030 तक ये समस्या और गंभीर हो जाएगी। डॉ. आशीष शर्मा, डब्ल्यूआरआई इंडिया के विशेषज्ञ, कहते हैं कि सूखा सहने वाली फसलें और बेहतर सिंचाई के तरीके अपनाने होंगे, जैसे ड्रिप इरिगेशन और जल संरक्षण।
पानी की कमी हिमालयी ग्लेशियरों और समुद्र का खतरा
Himalayan glaciers तेजी से पिघल रहे हैं, जो गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों को पानी देते हैं। 2030 तक नदियों में पानी कम होगा, क्योंकि ग्लेशियर जल्दी पिघल रहे हैं। साथ ही, समुद्र का बढ़ता स्तर तटीय इलाकों में खारा पानी लाएगा, जिससे पीने का पानी दूषित होगा। इससे गांवों और शहरों में water scarcity बढ़ेगी, और खेती के लिए पानी की कमी होगी। गंदा पानी डायरिया और हैजा जैसी बीमारियों को बढ़ाएगा, जिससे स्वास्थ्य पर और दबाव पड़ेगा। लद्दाख में “आइस स्तूप” जैसे प्रोजेक्ट पानी बचाने की कोशिश कर रहे हैं,

जहां ग्लेशियल पानी को जमा करके किसानों की मदद की जाती है। विश्व बैंक चेतावनी देता है कि water scarcity भारत की खेती और शहरों के लिए बड़ा खतरा है। हमें अभी से पानी बचाने के लिए बड़े कदम उठाने होंगे, जैसे बारिश का पानी इकट्ठा करना और स्मार्ट जल प्रबंधन।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव: असमानता और नुकसान
Climate change से भारत की अर्थव्यवस्था को 4% तक नुकसान हो सकता है। तूफान, बाढ़ और गर्मी से कारखाने, सड़कें और घर बर्बाद होंगे। 2020-21 में 30 लाख लोग climate disasters की वजह से बेघर हुए। गरीब और कमजोर लोग, जैसे ग्रामीण किसान और तटीय समुदाय, सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, क्योंकि उनके पास बचने के साधन कम हैं। ओडिशा के महानदी डेल्टा में लोग बाढ़ से बचने के लिए ऊंचे घर और बाढ़-प्रतिरोधी फसलें अपना रहे हैं,
लेकिन इन उपायों को पूरे देश में लागू करना चुनौतीपूर्ण है। Economic impact के साथ-साथ सामाजिक असमानता भी बढ़ेगी, क्योंकि अमीर लोग बेहतर संसाधनों के साथ खुद को बचा पाएंगे।
भारत का जवाब: अनुकूलन और हरित भविष्य की ओर कदम
भारत climate change से लड़ने के लिए कई कदम उठा रहा है। 2030 तक 50% बिजली सौर और हवा जैसे renewable energy स्रोतों से आएगी। छत्तीसगढ़ में सौर संयंत्र बन रहे हैं, जो बैटरी स्टोरेज के साथ बिजली की कमी को पूरा करेंगे। सरकार की राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC) में खेती, पानी और हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने की योजनाएं शामिल हैं। मुंबई 2050 तक दक्षिण एशिया का पहला zero-carbon शहर बनने की कोशिश कर रहा है,
जिसमें हरित बांड और सार्वजनिक-निजी भागीदारी का उपयोग हो रहा है। लेकिन चुनौतियां भी हैं। कोयला अभी भी भारत की 50% बिजली का स्रोत है, और इससे हटने के लिए भारी निवेश की जरूरत है।
निष्कर्ष: चुनौतियों के बीच उम्मीद की किरण
2030 तक भारत को heatwaves, बाढ़, सूखा, water scarcity और आर्थिक नुकसान जैसी बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन उम्मीद बाकी है। लद्दाख के आइस स्तूप, असम की बाढ़ चेतावनी सिस्टम और renewable energy जैसे कदम भारत की ताकत दिखाते हैं। Adaptation के लिए स्मार्ट खेती, बेहतर urban planning और पानी बचाने की योजनाएं जरूरी हैं। डॉ. चिराग धारा कहते हैं, “गरीबों और कमजोर समुदायों को बचाना सिर्फ सही नहीं, बल्कि भारत के भविष्य के लिए जरूरी है।” समय कम है, लेकिन भारत के पास नवाचार और लचीलापन है। क्या हम 2030 से पहले इन चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार होंगे?
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